लेखनी कहानी -10-Apr-2023 क्या यही प्यार है
भाग 4
आनंद और अनुसूइया ने साथ साथ डिनर लिया । इन पलों को दोनों ने ऐसे जीया जैसे सदियां एक साथ गुजर गई हों । सारे गम न जाने कहां गायब हो गये थे । दोनों के चेहरे कुमुदिनी की तरह खिले हुए थे । दोनों को ऐसा लग रहा था कि काश , ये रात यहीं रुक जाये । कभी भोर ही न हो । इतने कम समय में इतनी प्रगाढता महसूस करने के पीछे ईश्वर का क्या प्रयोजन हो सकता है ? शायद भगवान भी चाहते हैं कि उनका साथ हमेशा के लिए बना रहे । पर जब तक कोई पहल नहीं करेगा तो बात आगे कैसे बढेगी ? आनंद तो वैसे भी संकोची स्वभाव का था । फिर, उसने एक बार पहल करके ठोकर भी खा ली थी । अब दुबारा ठोकर खाने की उसकी हिम्मत नहीं थी ।
अनुसूइया के जीवन में पहली बार प्रेम का सावन आया था । वह तो तकदीर की मारी थी । उस पर जो जुल्म और अत्याचार हुए थे उसके बाद भी वह इतनी प्रसन्नचित्त थी तो यह उसका व्यक्तित्व ही था जो हर हाल में उसे खुश रखता था । पता नहीं आनंद के व्यक्तित्व में ऐसी क्या कशिश थी कि वह उसकी ओर चुंबक की तरह खिंची चली जा रही थी । आनंद की सरलता ने उस पर जादू कर दिया था । इतने बड़े घर का लड़का और इतना सरल ? हमारे मनीषियों ने सही कहा है कि जितना फलों से लदा हुआ वृक्ष होगा वह उतना ही पृथ्वी की ओर झुका हुआ होगा । कहीं आनंद को कविता चाहर से पृथक करने का उद्देश्य भगवान ने उसके लिए ही तो नहीं बनाकर रखा था ? आज उसने मन ही मन कविता चाहर को धन्यवाद दिया कि उसने एक अनमोल तोहफा उसके लिए छोड़ दिया था । ईश्वर की लीला भी बड़ी विचित्र है ।
खाना कब का समाप्त हो चुका था मगर जाने की इच्छा न तो आनंद की हो रही थी और न ह अनुसूइया चाह रही थी कि आनंद वहां से जाये । पर जाना तो पड़ेगा । यह सोचकर आनंद उठकर खड़ा हो गया । उसे खड़ा होते देखकर अनुसूइया का दिल धक से रह गया । काश ! आज की रात आनंद रुक जाये । आंखें उसे रोक रही थी मगर लब खामोश थे ।
"ठीक है , तो मैं चलता हूं । आप 11 बजे तैयार मिलना । मैं आकर आपको ले लूंगा । कल ऑफिस में पहला दिन है आपका , इसलिए मैं चाहता हूं कि आपको अपने स्टॉफ से मैं ही रूबरू करवाऊं । क्यों , सही है ना" ? आनंद ने हंसते हुए कहा ।
अनुसूइया का तो रोम रोम कह रहा था कि वह उसके इशारों पर नाचने को तैयार है । मुंह से कोई शब्द नहीं निकला मगर सारा शरीर कह रहा था "जो हुकुम मेरे आका" ।
आनंद अपने घर आ गया । उसकी आंखों में नींद कहां थी । आंखों में तो अब अनुसूइया बस गई थी । कितनी भोली और कितनी मासूम है अनुसूइया । काश ! उसका प्यार उसे मिल जाये ? उसने भगवान से मन ही मन प्रार्थना की कि अगर उसने जीवन में कुछ भी अच्छा किया हो तो उसे अनुसूइया का प्यार मिल जाये । वह अनुसूइया के खयालों में खो गया और उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला ।
सुबह नौ बजे उसकी मम्मी उसे जगाने आई तब जाकर उसकी नींद खुली । उसने घड़ी देखी तो वह नौ बजा रही थी । सामने मम्मी को देखा तो उसने उनके चरण स्पर्श कर लिये । "मेरे बेटे को भगवान सारी खुशियां दे दे । मेरी उम्र भी मेरे बेटे को लग जाये" उसकी मम्मी के रोम रोम से आशीर्वाद निकल रहा था ।
"मम्मी, आपको पता नहीं है कि आज मैं कितना खुश हूं" ! उसने मम्मी को बांहों में भरते हुए कहा ।
"हमें भी तो पता चले कि हमारा राजा बेटा कितना खुश है ? और यह खुशी देने वाली कौन भाग्यवान है" ?
आनंद को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि मम्मी को कैसे पता चला कि खुशियां देने वाली कोई लड़की ही है ? उसने कहा "आपको कैसे पता कि ये खुशियां देने वाली कोई लड़की ही है, लड़का नहीं" ?
"बेटा, तेरी मां हूं आखिर । तू किस चीज से खुश होता है किससे दुखी , सब पता है मुझे । अब तो तू जल्दी से उसका नाम बता दे, मैं खुद उसे बहू बना लूंगी" । उसकी मम्मी खुश होते हुए बोली
"थोड़ा सब्र करो मां , कल ही तो मिला हूं उससे । एक ही मुलाकात का असर ये है तो पता नहीं आगे क्या होगा" ?
"आगे और क्या होगा , शादी होगी, बच्चे होंगे । मौज मस्ती होगी" । मम्मी हंसकर बोली
"आपको तो बस, बहू और पोते पोती चाहिए । अभी तो इश्क की रेल का टिकिट कटाया है, आगे देखते हैं कि ट्रेन कहां जाकर रुकती है । मंजिल तो इसकी शादी ही है , पर आजकल समय बहुत खराब है ना , पता नहीं कहां जाकर रुके यह ट्रेन" ?
"भगवान पर भरोसा रख बेटा , वह सब कुछ ठीक करेगा । बस, भरोसा मत तोड़ना" ।
आनंद वहां से चलकर वाशरूम में आकर तैयार होने लगा । ठीक साढे दस बजे तैयार होकर नीचे आ गया । वहां पर एक बी एम ड्बल्यू कार तैयार खड़ी थी । वह लपक कर उसमें बैठ गया और गाडी चल पड़ी ।
गेस्टहाउस में अनुसूइया तैयार बैठी थी । उसने जीन्स और टॉप पहना था । इस लुक में वह कयामत ढा रही थी । आनंद का दिल उसे बांहों में जकड़ने के लिए मचलने लगा । लेकिन लोक लाज भी कोई चीज है कि नहीं । वह मन मारकर उसे लेकर ऑफिस आ गया । ऑफिस में उसने अपने स्टॉफ की अर्जेन्ट मीटिंग बुला ली । उस मीटिंग में उसने अनुसूइया का परिचय कराते हुए कहा
"इनसे मिलिये, ये हैं मिस अनुसूइया । कम्पनी की नई मैनेजर" । फिर वह मिस शीतल की ओर मुखातिब होते हुए बोला "मिस शीतल , आप अपनी नई मैनेजर को इनके चैम्बर तक लेकर जाओ और इन्हें इनका काम अच्छी तरह से समझा कर मुझे रिपोर्ट करो । और मिस अनुसूइया । ये हैं मिस शीतल , आपकी पर्सनल सेक्रेटरी । एनीथिंग एल्स " ?
इसके बाद अनुसूइया को लेकर मिस शीतल चली गई और उसे उसके चैम्बर में ले गई । वहां पर एक एक करके सारे स्टॉफ से उसका परिचय करवाया और बाद में उसे उसका काम समझाया । अनुसूइया का दिमाग बहुत तेज था । ये अलग बात है कि उसे अब तक मौका नहीं मिला था अपनी परफॉर्मेंस दिखाने का । अब तक तो उसे वाइन बार में शराब परोसने का ही काम मिला था जिसे उसने बखूबी अंजाम दिया था ।
परिचय और काम समझाने में दो बज गये । लंच का समय हो गया । अनुसूइया को भूख लगने लगी थी । वह मन ही मन सोचने लगी कि काश आनंद का साथ लंच में मिल जाता । वह अभी सोच ही रही थी कि तभी मिस शीतल ने उसके पास आकर कहा "आपको सर बुला रहे हैं" ।
"सर ! कौन से सर" ? अनुसूइया एकदम से अचकचा गई थी
"यहां तो एक ही सर हैं और वो हैं आनंद सर । वे आपको बुला रहे हैं" मिस शीतल ने मुस्कुराते हुए कहा
अब अनुसूइया को अपनी मूर्खता का अहसास हुआ । "ओह, आई एम सो सॉरी । आई मीन आनंद सर ने बुलाया है" ? वह संयत होने का प्रयास करने लगी ।
"जी, उन्होंने ही बुलाया है" मिस शीतल के चेहरे पर अर्थपूर्ण मुस्कान थी ।
थोड़ी देर में मिस शीतल अनुसूइया को लेकर आनंद के चैम्बर में आ गई । अनुसूइया को चैम्बर में छोड़कर शीतल चली गई ।
आनंद ने अनुसूइया का वैलकम करते हुए कहा "आज ही सारी परफॉर्मेंस दिखा दोगी या कल के लिए भी कुछ बचाकर रखोगी" ? आनंद के स्वर में प्रेम मिश्रित उलाहना था ।
"आज तो कुछ किया ही नहीं है सर , आज तो केवल काम के बारे में थोड़ा सा जाना है बस । कुछ करने का मौका अभी मिला कहां है " ? अनुसूइया ने नेत्रों से कृतज्ञता जताते हुए कहा
"सर नहीं सिर्फ आनंद कहो अनुसूइया जी" आनंद ने विनय पूर्वक कहा
"जी, पर शर्त यह है कि आप भी सिर्फ अनुसूइया कहें" अनुसूइया ने भी उतनी ही विनम्रता के साथ कहा ।
"तुम औरतों की यही तो समस्या है । हर बात में अगर मगर, किन्तु परन्तु जरूर लगा देती हो । बिना शर्त के आप मेरी बात मान नहीं सकतीं" ? आनंद कृत्रिम रोष के साथ बोला
"और आप मर्दों के साथ भी यही समस्या है कि आप भी हीले हवाले के बिना कोई भी बात नहीं मानते हैं । आप मेरी बात मानिये, मैं आपकी बात मान लेती हूं । अब ठीक है" ? अनुसूइया का हृदय अंदर ही अंदर कुलांचें भर रहा था । आनंद का साथ ही उसके लिए प्रसन्नता का महासागर था । इस महासागर की उसे कब से प्रतीक्षा थी । अब जो मिला है तो उसे डर लगता है कि कहीं यह छिन न जाये । क्या पता आनंद के घरवाले उसे स्वीकार करेंगे या नहीं ?
उसके चांद से चेहरे पर मलिनता की लकीरें देखकर आनंद बोला "क्या सोचकर चिंतित हुआ जा रहा है , जरा हम भी तो सुनें ? लगता है ऑफिस का चैम्बर पसंद नहीं आया है" ? आनंद ने उसे हंसाने के लिए कहा । अनुसूइया ने उसके होठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा "ऐसे कहकर मुझे और शर्मिन्दा ना करें सर । आपके उपकारों का बदला मैं कैसे चुका पाऊंगी" ? अनुसूइया की आंखों में आंसू आ गये थे ।
"एक तरीका है चुकाने का । पर तुम कर नहीं पाओगी" आनंद ने अर्थपूर्ण निगाहों से देखकर कहा ।
"ऐसा कौन सा तरीका है, जरा बताइये तो ? मैं अवश्य करूंगी । आप बताइये तो सही" । अनुसूइया की आंखों में गहरी जिज्ञासा थी
"सोच लो । मैं फिर कह रहा हूं कि कर नहीं पाओगी" । आनंद के अधरों की मुस्कान और चौड़ी हो गई ।
अनुसूइया ने आनंद की आंखों में गौर से देखा तो वह समझ गई कि उपकार का बदला कैसे चुकाना है । बात समझते ही उसके चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई । उसने अपनी नजरें नीचे कर ली ।
"हमने कहा था न कि नहीं कर पाओगी" । आनंद उसे उकसाते हुए बोला । अब यह कुछ ज्यादा हो गया था । इतना चैलेंज तो उसे कभी नहीं मिला था । वह भी तैश में आ गई और उसने आव देखा न ताव , एक झटके से उसने अपना मुंह आनंद के मुंह से सटाया और अगले ही पर आनंद के होंठ उसके होठों की लिपस्टिक से पुते नजर आने लगे ।
"मान गये आपको अनुसूइया जी । कमाल की दिलेर हैं आप" । अबकी बार आनंद ने बदला पूरा कर लिया । खाना पड़ा पड़ा ठंडा हो रहा था । इस "डिश" के सामने खाने को कौन पूछे ?
क्रमश :
श्री हरि
18.4.23
Gunjan Kamal
23-Apr-2023 08:04 PM
👏👌
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Hari Shanker Goyal "Hari"
24-Apr-2023 02:32 PM
🙏🙏
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अदिति झा
19-Apr-2023 06:24 PM
Nice one
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Hari Shanker Goyal "Hari"
24-Apr-2023 02:32 PM
🙏🙏
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shahil khan
18-Apr-2023 11:54 PM
nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
24-Apr-2023 02:32 PM
🙏🙏
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